दृष्टिहीन पंकज ने कैसे कमाया वकालत की दुनिया में अपना नाम

"ज़िन्दगी में सब बात नज़रिए की है. अगर आप अपने अंदर की कमी को ही देखते रहेंगे तो प्रयास कब करेंगे. लोगों को अपनी आंखों से पर्दा हटाकर हमसे हमदर्दी जताने की जगह हमारा हौसला देखना चाहिए''

ये शब्द हैं अपने हौसले और हिम्मत की बदौलत दृष्टिहीन होने के बावजूद वकालत की दुनिया में अपना नाम कमाने वाले पंकज सिन्हा का.

पंकज सिन्हा की शुरुआती ज़िंदगी काफ़ी कठिन रही. उन्हें दर-दर पर दृष्टिहीन होने की वजह से कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा.

लेकिन तमाम परेशानियों से जूझने के बाद भी पंकज सिन्हा ने क़ानून की दुनिया में समाज के कमज़ोर लोगों की आवाज़ बनकर एक मुक़ाम हासिल किया है.

उनके वकील बनने की कहानी को जानने के लिए हम हाई कोर्ट पहुंचे.

कुछ मंज़िल ऊपर चढ़कर उनका चैंबर आता है. चैंबर के दरवाज़े पर सबसे पहले हमारी नज़र उनके नेम-प्लेट पर पड़ी जिस पर हिंदी और अंग्रेज़ी भाषा में उनका नाम और पद तो लिखा ही था साथ ही ब्रेल लिपि (ब्रेल स्क्रिप्ट) में भी उनका नाम अंकित था.

38 साल के पकंज सिन्हा झारखंड में रामगढ ज़िले के रहने वाले हैं जिनके पिता, अजीत सिन्हा का वकालत से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था.

वह रेलवे कॉन्ट्रैक्टर थे और मां, उषा देवी, पहले सरकारी स्कूल में पढ़ाती थीं. पिता का 2016 में दिल की बीमारी के चलते देहांत हो गया था.

पंकज सिन्हा के पाँच भाई और एक बड़ी बहन हैं.

पंकज बताते हैं कि चूंकि वह जन्म से ही दृष्टिहीन थे तो उनके माता-पिता को उनकी सबसे ज़्यादा चिंता रहती थी.

वह सोचते थे कि सातों बच्चों में वह कहीं सबसे पीछे ना रह जाएं.

पंकज के माता-पिता ने उनके इलाज के लिए पहले रांची स्थित सरकारी अस्पतालों का दरवाज़ा खटखटाया.

इसके बाद पंजाब की तरफ़ भी रुख किया और एक आख़िरी कोशिश दिल्ली के एम्स में भी की.

लेकिन सबके नतीजे एक ओर ही इशारा कर रहे थे कि शायद पंकज को इस कड़वे सच के साथ जीना पड़ेगा.

जहां परिवार वाले उन्हें बेचारा समझ कर हमदर्दी दिखा रहे थे, वहीं उस छोटी सी उम्र में पंकज अपने भविष्य के लिए सपने बुन रहे थे.

पकंज 1996 की बात याद करते हुए कहते हैं, ''उन दिनों मैं 8वीं क्लास में था तो बॉलीवुड की फ़िल्मों में वकीलों के बारे में सुनकर उस पेशे से प्रभावित हुआ करता था.''

वह बताते हैं, ''घर वाले मेरी फ़िक्र करते थे लेकिन मेरी लाचारी के बारे में मेरे सामने कुछ नहीं कहते थे, हां मेरे पीछे वह मानसिक रूप से परेशान रहते लेकिन मेरे सोचने समझने का तरीक़ा ज़रा अलग रहता था.''

पंकज ने स्कूल की सारी पढ़ाई ब्लाइंड स्कूल से की.

वह कहते हैं कि उनके दादा जी उनके भाइयों से मिट्टी के अक्षर जैसे 'क ख ग' या 'ए बी सी' बनवाते थे और उन्हें उसे छूकर पहचानने को कहते थे.

Comments

Popular posts from this blog

肺炎疫情:特朗普称美国将分三阶段重启经济

肺炎疫情:西班牙和法国实施大规模严厉防疫措施